प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत prachin bharat ka itihas janne ke srot
हेलो दोस्तों में अनिल कुमार पलाशिया अज फिर आपके लिए एक महत्वपूर्ण जानकारी आपके सामने लेकर आ रहा हु इस लेख में हमने आपको प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत prachin bharat ka itihas janne ke srot से सम्बंधित जानकारी को हम इस लेख में देखेंगे . जिससे यह लेख आपको किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा के लिए बहत ही महत्वपूर्ण जानकारी देखने को मिलेगी .
प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत
भारत का इतिहास बहुत ही प्राचीन इतिहास माना जाता है यह मेसोपोटामिया की सभ्यता के समक्ष या चीन की सभ्यता के समक्ष माना जाता है भारत उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक फैला हुआ उपमहाद्वीप के नाम से भारत जाना जाता है
महाकाव्य और पुराण
महाकाव्य तथा पुराणों में भारतवर्ष अर्थात भारत का देश यह के निवासियों को भारतीय अर्थात भारत की संतान माना गया है।
प्राचीन भारत का नाम
भारत एक प्राचीन कबीले का नाम था प्राचीन काल में भारत को जम्बूद्वीप के नाम से जाना जाता है प्राचीन ईरानी इसे सिंधु नदी के नाम से जानते हैं यह पूरे पश्चिम में फैला हुआ है यूनानी इसे इंदे और अब इसे हिंदू के नाम से जानते हैं
विंध्य पर्वतमाला।
विंध्य की पर्वत श्रृंखला देश को उत्तर और दक्षिण दो भागों में बनती है उत्तर में इंडो यूरोपियन परिवार की भाषाएं बोलने वालों की और दक्षिण में द्रविड़ परिवार की भाषाएं बोलने वाले लोग निवास करते हैं।
भारत की जनसंख्या पाई जाती है
भारत की जनसंख्या का निर्माण जिन प्रमुख नसों के लोगों के द्वारा हुआ है वह प्रोटो ऑस्ट्रेलायड, पैलियो मेडिटरेनियन ककेशाशायड, नीग्रोएड और मंगोलायड है
भारत का इतिहास बटा हुआ है
प्राचीन भारत
मध्यकालीन भारत
आधुनिक भारत
भारत के इतिहास कोतीन भाग मैं बांटने का श्रेय जर्मन इतिहासकार कृष क्रिस्टोफ सेलियरस 1638/1707 D को जाता है।
प्राचीन भारत का इतिहास जानने के स्रोत
धर्म ग्रंथ
ऐतिहासिक ग्रंथ
विदेशियों का विवरण
पुरातत्व संबंधी साक्ष्य
प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के धार्मिक ग्रंथ
भारत का प्राचीन धर्म ग्रंथ वेद है
वेद का संलग्न करता महर्षि कृष्ण वेदव्यास को माना जाता है
वेद में मुख्ता वसुदेव कुटुंबकम का उपदेश मिलता है
मुख्यतः चार वेद ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद और अर्थवेद है।
चार वेदों को संहिता के नाम से जाना जाता है
रचनाओं के क्रमबद्ध ज्ञान को ऋग्वेद कहा जाता है
ऋग्वेद में 10 मंडल 1028 सूक्त एवं 10462 रचनाएं होती है
ऋग्वेद की रचना को पढ़ने वाले ऋषि को हाेत्र कहा जाता है।
ऋग्वेद में मुख्यतः आर्यों के द्वारा राजनीतिक प्रणाली इतिहास एवं ईश्वर की महिमा के बारे में बताया गया है।
ऋग्वेद की रचना विश्वामित्र के द्वारा की गई थी
ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है।
ऋग्वेद के आठवें मंडल में हस्तलिखित रचनाओं को लिख कहा जाता है।
चतुष् वर्ण समाज में चार वर्ण ब्राह्मण क्षत्रिय देश और शुद्ध है।
ऋग्वेद के कई परिचय दो में प्रयुक्त अधन्य शब्द का संबंध गाय से है।
ववनावतार के बारे में भी ऋग्वेद में इसका उल्लेख किया गया है।
ऋग्वेद में इंद्र के लिए 250 तथा अग्नि देव के लिए 200 रचनाओं का उल्लेख किया गया है
प्राचीन इतिहास के साधन के रूप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपत ब्राह्मण का स्थान है।
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