भारत की भूगर्भिक संरचना ncert - bharat ki bhogolik sanrachna ncert in hindi
भारत की भूगर्भिक संरचना UPSC
भारत के वृहद अक्षांशीय तथा देशांतर विस्तार संरचना की विविधता तथा विभिन्न आकृति प्रदेशों के कारण यहां पर्याप्त स्थल कृतियां विविधता पाई जाती है। भारत के प्रायद्वीप भाग के पठार जटिल भूगर्भिक संरचनाओं को प्रदर्शित करते हैं भारत के उत्तर में जहां हिमालय जैसी नवीन पर्वत श्रृंखला स्थित है तो वहीं दक्षिण में कैंपियन पूर्व काल की प्राचीनतम चट्टानें मिलती है।
भारत की भूगर्भिक संरचना की अध्ययन से पहले हमें उसकी उत्पत्ति को जानना जरूरी है पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास को पांच
- एजोइक [ अजैविक ]
- पेल्योजोइक
- मेसोजोइक
- सेनोजोइक
- निओजोईक
यदि हम भारत की भूगर्भिक संरचना के बारे में जानना चाहते हैं तो इसकी जानकारी भारत के विभिन्न भागों में पाए जाने वाले चट्टानों के स्वरूप तथा प्रकृति से प्राप्त हो सकती है भारत में प्राचीनतम तथा नवीनतम दोनों प्रकार की चट्टाने पाई जाती है।
भारत में चट्टानों का वर्गीकरण
1- आर्कियन क्रम की चट्टानों
इस क्रम की चट्टानों का निर्माण पृथ्वी के ठंडा होने के फल स्वरुप से हुआ है यह प्राचीनतम तथा मूलतम चट्टान है यदि अत्यधिक के रूपांतरण के कारण इन मूल स्वरूप नष्ट हो चुका है इनमें जीवाश्म नहीं पाए जाते हैं आगे चट्टानों के रूपांतरण से ही निज का निर्माण हुआ है बुंदेलखंड की नीस को चाटने सबसे प्राचीनतम नीस है इन चट्टानों में धात्विक तथा आध्यात्मिक खनिजों के साथ-साथ बहुमूल्य पत्थरों तथा भवन निर्माण पत्थरों की प्रचुरता है
आर्कियन क्रम की चट्टानें पाई जाती है
- कर्नाटक
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- मध्य प्रदेश
- उड़ीसा
- झारखंड
- छोटा नागपुर के पठार
- राजस्थान के दक्षिण पूर्व भागों में पाई जाती है।
धारवाड़ क्रम की चट्टान
धारवाड़ क्रम की चट्टानों का निर्माण आर्यन क्रम की चट्टानों के अपरदन तथा निक्षेपण से हुआ है यह चट्टानें प्राचीनतम परतदार चट्टानें हैं लेकिन इनमें भी जीवाश्म का अभाव पाया जाता है इसका मुख्य कारण इनके निर्माण के समय जीवों का उद्भव ना होना है या फिर लंबे समय के कारण इनके जीवाश्म नष्ट हो गए हैं
- अरावली पर्वत का निर्माण इसी क्रम की चट्टानों से हुआ है
- इसके बाद इस क्रम की चट्टानों आर्थिक दृष्टिकोण से सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है।
- अधिकांश प्रमुख धात्विक खनिज जैसे लोहा सोना मैंगनीज आदि इन चट्टानों पाया जाता है।
- इस क्रम की चट्टानों का जन्म यादपी भी कर्नाटक के धरवाड़ तथा शिमोंग जिले से हुआ है
- कर्नाटक से कावेरी घाटी तक नागपुर व जबलपुर की सोंसर श्रेणी गुजरात में चंपानेर श्रेणी आदि में भी पाई जाती है।
कुडप्पा कम की चट्टान है
- इसका निर्माण धारवाड़ क्रम की चट्टानों के अपरदन तथा निक्षेपण से हुआ है
- यह भी परतदार चट्टानें है
- इनका नामकरण आंध्र प्रदेश के कुडप्पा जिले के नाम पर किया गया है
- यह चट्टानें बलुआ पत्थर चूना पत्थर संगमरमर एस्बेस्टस आदि के लिए प्रसिद्ध है
- दक्षिण भारत के अलावा यह चट्टानें राजस्थान में पाई जाती है।
विंध्य कम की चट्टानों
- इसका निर्माण कडप्पा चट्टानों के निर्माण के बाद हुआ है
- यह छीछले सागर एवं नदी घाटियों के तलछट के निक्षेपण से इनका निर्माण हुआ है
- इस प्रकार की चट्टानें भी परतदार चट्टानें होती हैं
- इसमें सूक्ष्म जीवों के जीवाश्म के प्रमाण मिलते हैं
- इनका विस्तार मालवा के पठार सोन घाटी बुंदेलखंड आदि में मिलता है
- इन चट्टानों का उपयोग मुख्यतः भवन निर्माण के लिए किया जाता है
- जैसे बलवा पत्थर इसके अतिरिक्त चूना पत्थर चीनी डोलोमाईड आदि भी विंध्य क्रम की चट्टानें हैं
- मध्य प्रदेश के पन्ना जिले एवं कर्नाटक के गोलकुंडा की हीरे की खान इसी क्रम की चट्टानों में स्थित है।
गोंडवाना क्रम की चट्टान
- इन चट्टानों का निर्माण कार्बोनिफेरस से जुरासिक युग के मध्य हुआ है
- कार्बोनिफरस युग में प्रायद्वी भारत में कई दरारों या भ्रांशो का निर्माण हुआ है
- जिसे तत्कालीन वनस्पतियों के दबने से कालांतर में कोयले का निर्माण हुआ है
- भारत का 98% कोयला इन्ही प्रकार की चट्टानों में पाया जाता है
- यह कोयला मुख्य रूप से दामोदर सोन महानदी तवा गोदावरी वर्धा आदि नदियों की घाटियों में पाया जाता है।
ढक्कन ट्रैप की चट्टान
- मेसिजोइक युग के अंतिम काल में प्रायद्वीपीय भारत में ज्वालामुखी की क्रिया प्रारंभ हुई
- दरारों के माध्यम से लावा उद्गार के फल स्वरुप इन चट्टानों का निर्माण हुआ
- यह चट्टानों काफी कठोर होती है तथा उनके विखंडन से ही काली मिट्टी का निर्माण हुआ है
- यह चट्टानें मुख्ता महाराष्ट्र गुजरात मध्य प्रदेश कर्नाटक तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश के कुछ भागों में पाया जाता है।
टर्शियारी क्रम की चट्टान है ।
इस क्रम की चट्टानों का निर्माण इयोसीन युग से लेकर प्लायोसिन युग के मध्य हुआ है इसी काल में हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ है असम राजस्थान में गुजरात के खनिज तेल इसी क्रम की चट्टानों में पाए जाते हैं।
क्वॉटरनरी की चट्टान
क्वॉटरनरी क्रम की चट्टानें इस काल की चट्टानें सिंधु एवं गंगा के मैदानी भागों में पाई जाती है नदी घाटियों में प्लासटोसिन काल में जलोढ़ मृदा का निर्माण हुआ है जिसे बांगर के नाम से जाना जाता है प्लास्टोसिन के अंत में वह होलोसीन काल में नवीन जलोढ़ मृदा का निर्माण हुआ है जिसे खादर के नाम से भी जाना जाता है।
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